जापानी सरकार को यह भली-भाँति याद होना चाहिए कि उसने अपने साम्राज्यवादी जापानी आक्रमकता (आक्रमण ) से चालीस से भी अधिक वर्षों तक कोरिया को अपनी संप्रभुता से वंचित रखा । इसमें कोई शक नहीं कि यह आक्रमण कई चरणों में हुआ जिसके परिणामस्वरूप जापान ने (1910 में) पूरे कोरिया पर अपना कब्जा जमा लिया । लेकिन वास्तव में जापान ने कोरिया से उसकी नियंत्रण शक्ति को 1904 में ही कोरिया-जापान समझौतातथा प्रथम कोरिया-जापान संधि के मूल पत्र पर जबर्दस्ती हस्ताक्षर करवा कर छीन लिया था ।
अगले साल 1905 में सिमाने ह्योन सरकार ने आरोप लगाया कि इसने दोक्दोको अपने अधिकार क्षेत्र में शामिल कर लिया था । अर्थात्, दोक्दोकोरियन प्रायद्वीप पर जापान के आक्रमण का पहला शिकार बना । अब, जापानी सरकार द्वारा दोक्दोपर अपने झूठे दावों के मद्देनजर, कोरिया की जनता अपने ऊपर फिर से जापानी आक्रमण होने की शंका को नजरंदाज नहीं कर सकती है।
इस हालत में देखे जाए, तो कोरियन जनता के लिए दोक्दोपूर्वी सागर में बसा एक छोटा सा द्वीप मात्र ही नहीं है । यह न केवल जापान के खिलाफ कोरिया गणराज्य की संप्रभुता की प्रतीक है बल्कि अखंड कोरिया गणराज्य कीसंप्रभुता की संपूर्णका का निर्य करने की कसौटी भी है ।
ब्योन योंग-थाई, कोरिया गणराज्य केविदेश मंत्रालय के तीसरे मंत्री (अक्तूबर 28, 1954)