08. नयी संधि, 『दाईहन मेईल शिनबो』 (जुलाई 27, 1907)
संपादकीय लेख
नयी संधि (1907 की कोरिया-जापान संधि)
गियोंगसोंग इल्बो और सीओल प्रेस शिनबो ने कल सुबह कोरिया-जापान संधि 1907, जो कुछ रातों पहले इतो और यी वान-योंग* द्वारा हस्ताक्षरित हुई थी, को अतिरिक्त पृष्ठ जोड़कर छापा । यह समझौता इस अख़बार द्वारा कल ही लिखा गया था, उसलिए इसे दोबारा छापने की जरूरत नहीं है, सबसे पहला तथ्य जो नागरिकों को अपने दिल में गाँठ बाँध लेना चाहिए वो यह है कि यह संधि जापान के रेजीडेंट जनरल को कोरियाई साम्राज्य का अनभिषिक्त सम्राट बना देगी । दूसरी बात यह है कि इस अकेले व्यक्ति के पास दुर्जेय प्रभुत्व होगा, लेकिन यह चयनित व्यक्ति(रेजीडेन्ट जनरल) राष्ट्र को शासित करने में, अपनी कर्तव्यों का निर्वास सहनशक्ति के साथ करने में, कोरिया की देखरेख करने में क्या भूमिका निभायेगा, यह देखना अभी बाकी है । प्राप्त जानकारी के अनुसार मौजूदा मंत्रिमंडल ने संधि के कई पहलुओं पर कुछ दिनों पहले ही दोपहर से लेकर शाम तक गहन चर्चा की और इसके बाद इन्होंने सम्राट के समक्ष इसे प्रस्तुत किया । सम्राट की अनुमति मिलने के बाद, इतो और यी वान-योंग ने अंतिम चरण के रूप में उसे मुहरबन्द कर दिया ।
इस प्रकार जो भी कोरिया की स्वतंत्रता हेतु बचा था, वह जा चुका है । हालाँकि यह नाममात्र नहीं है, यह देश वास्तव में जापान को सौंपा जा चुका है । जो हो चुका है, उसे छुपाने का कोई अर्थ नहीं है ; इसने बहुत से दुःख झेले हैं और यह पहले ही समाप्त हो चुका है । कोरियाई व्यक्तियों के अब सिर्फ चरित्र बचा है जिसे हमें सारी दुनिया को दिखाना होगा । यदि हम व्यवसायों और शिक्षा को बढ़ावा देते हुए खुद की सरकार गठित कर पाएँ, तब ही हम भ्रष्टाचार और शर्म से उबार पाएँगे । स्वर्ग के रास्ते से आने वाली अनुकम्पा निश्चित रूप से एक दिन हमारी बघली करेगी । अपनी भूमिका में जापानी रेजीडेन्ट जनरल को व्यक्तिगत रूप में इस अभागे देश के लिए दया होनी चाहिए, और किसी भी तरह से मुख्य भूभाग के लोगों के लाभ हेतु कोरियन सम्प्रभुता की अनुमति देनी चाहिए । यह समझौता स्वभाविक रूप से हमें ऐसे नियमों एवं विनियमों से अवगत कराता है जिसकी घोषणा यूनाइटेड किंगडम के मार्ग दर्शन के बावजूद भी भारत जैसे देश में भी नहीं की जा सकती थी । यदि शक्ति और अधिकारों की जरूरत होती है, तभी संधि ठीक तरीके से लागू की जायेगी । जब कि रेजीडेन्ट जनरल एक संवेदनशील, उदार, राजनयिक गुणों से परिपूर्ण व्यक्ति है, फिर भी वह यूनाइटेड किंगडम के शासकीय गुणों की नकल या अनुकरण कर सकता है जिसके लिए उसे अधिक शक्ति लगाने की आवश्यकता नहीं है ।
ब्रिटिश शासकों की तरह ही जब रेजीडेन्ट जनरल को भी अब अवसर मिल चुका है, रेजीडेन्ट जनरल को कोरियाई लोगों को समझना चाहिए जो कि बुद्धिमान और विश्वासपात्र हैं, और जब भी कोरियाई मिलें, उनको अपनी योग्यता सिद्ध करने का एक अवसर देना चाहिए । दूसरे शब्दों में कहें, तो रेजीडेन्ट जनरल को संधि के अनुच्छेद 5 के अनुसार सिर्फ जापानी को साधारण पद के लिए नहीं नियुक्त करना चाहिए । अधिकारों का होना जापान के लिए लाभकारी है लेकिन इसका कार्यात्वयन कोरियाई लोगों के लिए नुकसानदेह है । अनुच्छेद 3 के अनुसार, न्यायिक और प्रशासनिक मामलों को अलग तौर से रखा जायेगा । मौजूदा समय में, बहुत से मामलों में हम पाते हैं कि एक सुबे का राज्यपाल अपने सुबे में कई पदों जैसे कि सैन्य-अधिकारी, प्रशासक, न्यायाधीश आदि की भूमिका भी निभाता है । यह एक बुरी कार्यप्रणाली है जिसमें जल्द से जल्द सुधार होना चाहिए । नया शासन को सुचारू रूप से कार्याचयित किये जाने पर बहुत से लोगों को इसका लाभ पहुँचेगा ।
यद्यपि, संधि में परिभाषित नहीं हुआ है, यह एक विशेष है । यदि मार्कीज इतो कोरिया की शांति और अखण्डता की चाह करे लेकिन अपने अभियान से बेचैन हो जाये, उस स्थित में एक चीज क्या होगी जो उपादान करेगी? याद रहे यह लोगों द्वारा प्राप्त (Fairness XXX) ** सम्मान होगा । अब जब जापान सारे कोरिया के लिए जिम्मेदार है, यह निश्चित रूप से कोरियाई अपराधियों को सजा देगा जबकि जापानियों को वही अपराध करने पर छोड़ देगा । पिछले 2 वर्षों में, गवर्नर जनरल ने एक ही तरह का अपराध होने पर जापानियों और कोरियाई लोगों के लिए अलग नियम लागू किये हैं, जो जापानियों को आसानी से बुरे कर्म करने की अनुमति देते हैं जबकि कोरियाई लोगों का पिछला रिकार्ड देखा जाता है ।
* यी वान-योंग, कोरियाई मंत्री था जिसने कोरिया को जापान के अधिकार में जाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई ।
** “XXX” : इसका मतलब एक खोया हुआ शब्द है ।