07. कोरिया-जापान संधि पर दूसरी फॉलो-अप रिपोर्ट, 『दाईहन मेईल शिनबो』 (दिसंबर 24, 1905)
संपादकीय लेख
कोरिया-जापान संधि(उल्सा निषेध संधि) पर दूसरी फॉलो-अप रिपोर्ट
इस अख़बार ने पहले ही सरकारी राजपत्र लेख के दो अंशों का खंडन कर दिया था जिसकी घोषणा सीओल में उपस्थित जापानी दूतावास सारे विश्व में करना चाहता था । योकोहामा के एक अख़बार ने इस रिपोर्ट (बीते हुए कल का खंडन) की आलोचना करते हुये टिप्पणी की, कि जापान के अधिकारी इस रिपोर्ट के बारे में कुछ भी नहीं कह रहे हैं जो रिपोर्ट की गुणवत्ता को दर्शाता है, अख़बार ने इस तथ्य की पुष्टि की । यह निराशाजनक है, कि जापान के अधिकारियों ने इस अख़बार को पिछली रिपोर्ट दुबारा दोहराने के लिए बाध्य किया जो कि एक अप्रत्याशित कारवाई थी । जापानी दूतावास द्वारा दिये गये निर्देश के महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं : जिस तरह यह हुआ, शाही महल के बाहर रात में होने वाले दंगे पर प्रश्नचिन्ह लगा । खोजबीन करने के दौरान कुछ हथियारबंद हत्यारों और एक जापानी व्यक्ति को, जो शिक्षा मंत्री के व्यक्तिगत आवास को आग लगा रहा था, पकड़ लिया गया । जापानी राजदूत और कई जापानी मंत्रियों की महल निकासी के लिए जनरल हासेगावा* ने मुठ्ठी भर सिपाहियों को महल के सामने वाली सड़क के उस पार तैनात कर दिया । दर्जनों कोरियन और जापानी सैनिकों एवं पुलिसवालों को मंत्रियों तथा राजदूत की सुरक्षा में लगा दिया गया । कुछ हथियारबंद हत्यारे दिखाई दिये । इस पत्रकार के कुछ संदेह हैं : जैसे कि दाईहन मेईल शिनबो का प्रतिनिधि उस समय महल के चारों ओर टहल रहा था । उसने देखा कि जापानी सिपाहियों और सैनिकों ने उस सड़क पर तैनाती दे दी थी, पागल के अलावा कोई और उसके बीच हथियार लेकर घुसने का दुस्साहस नहीं कर सकता था ।
न केवल यह बल्कि, महल का प्रवेश द्वार पूरा खुला हुआ था और महल प्रांगण और सरकार जापानी अधिकारियों तथा सैन्य पुलिस द्वारा उस समय अधिकृत कर लिया गया जब सारे लोग जा चुके थे । राजदूत की सुरक्षा का दावा पूरी तरह से बकवास था । इस पूरे प्रकरण में सम्राट और मंत्रीगण उनके निशाने में थे जो पूरी तरह से घबराये हुये थे, 10 वर्ष पहले की तरह वो शरणार्थियों को रोकना चाहते थे ।** आपसी सहमति द्वारा की गयी शाही संधि के बेतुके दावे को गलत साबित करते हुये यह अख़बार स्पष्ट रूप में रेखांकित करता है : समर्पित पाठकों, दो निष्ठावान अधिकारियों मिन और जो*** द्वारा की गयी सिफारिश का सम्राट द्वारा दिये गये उत्तर से, और सम्राट द्वारा अमेरिकी श्री हलबर्ट**** को भेजे गये सन्देश से हमें पक्के सबूत मिलते हैं कि सम्राट ने इस संधि को स्वीकार नहीं किया था । जापान द्वारा की गई आजमाइश से केवल इसकी अक्षमता का पता चलता है, और स्वभाविक रूप में, यह दिखाता है कि कोरिया ने अभी अपनी सारी आशाओं को नहीं खोया है ।
* योशिमिची हासेगावाने बाद में 1916 ई. से 1919 ई. तक कोरिया के जापानी गवर्नर-जनरल के रूप में अपनी सेवाएँ दीं ।
** 1896 ई. में रूस के दूतावास में कोरियाई शाही शरणार्थी ।
*** मिन योंग-ह्वान और जो बियोंग-से उन चन्द कोरियाई अधिकारियों में शामिल थे जिन्होंने उल्सा निषेध संधि के विरोध में आत्महत्या कर ली ।
**** होमर हलबर्ट(1863-1949), एक अमेरिकी पादरी और पत्रकार जिसने कोरिया की स्वतंत्रता का पक्ष लिया ।