02. ऊगियोंगो(पुनर्चेतावनी), 『ह्वांगसोंग शिनमुन(समाचारपत्र)』 (अक्टूबर 3, 1904)
संपादकीय लेख
ऊगियोंगो(पुनर्चेतावनी)
अफ़सोस की बात है कि कोरिया 500 वर्षों से चीन के तट पर बसा हुआ एक अधीन राज्य है, जिसकी स्थापना जोसनके राजा थैजोने की जिसे चीन सम्राट के दरबार में कभी-कभी अपनी निष्ठा व्यक्त करने के लिए जाते थे । कोरिया तब अपने देशी और विदेशी मामलों में खुद निर्णय लेते थे, जिसमें चीन का कोई भी हस्तक्षेप नहीं था ।इस प्रकार, कोरिया चीन के अधीन माना जाता था, बल्कि वास्तव में एक स्वतंत्र राज्य था ।जोसनकी स्थापना (1895) के 503 वां वर्ष में, पहले चीन-जापानयुद्ध के बाद चीन के अधिनत्व से कोरिया पूरी तरह मुक्त हो चूका था ।कोरिया ने दुनिया के दूसरे देशों में अपने राजदूत का भी आदान-प्रदान किया और उससे राष्ट्र की गौरव और सम्मान में द्विपक्षीय अधिकारों को बढ़ावा भी मिला ।
अगर हम कोरियन अपनी स्वतंत्रता को पूरी तरह लागू करें, चिरकालीन बुराई को सुलझाते हुए, और धीरे-धीरे स्वतंत्रता की नींव रखने के लिए जागृत हों तो हम 3000 ली (1,178 कि. मी.)( ली = चीनी क्षेत्रफल मापने की इकाई) में फैले छोटे से देश को होते हुए भी अमीर और शक्तिशाली हो सकते हैं और दूसरी शक्तियों के कंधे-से-कंधा मिलाकर चल सकते हैं ।तब, भविष्य में, हम जापान के आक्रमण से डरने के बजाय उस पर अपना प्रभाव दिखा सकते हैं ।
आज में आकर, कोरिया मात्र लगभग एक दशक ही स्वतंत्र रहा, और जापान ने खुलकर कोरिया को अपने “संरक्षण” में रखा और मीडिया द्वारा अन्य राष्ट्रों में इसकी घोषणा की । यह सिर्फ शब्दों में ही नहीं है, बल्कि जापान के हाल के कारवाई से सिद्ध होता है कि जापान कोरिया के देशी और विदेशी मामलों के अधिकार में हस्तक्षेप कर रहे हैं । परिणामस्वरूप, कोरिया की स्वतंत्रता का इतना हनन हुआ कि यह लगभग नहीं है ।यह सिर्फ नाम के लिए स्वतंत्र है, बल्कि यह वास्तव में जापान के अधीन राज्य है । संरक्षण देश में होना इससे कहीं बेहतर है ।देश का अपमान और शर्म तो इससे कहीं बृहत्तर नहीं है ।
हाय ! एक बारजापानी समाचारपत्र में देखा कि दुसरे देश के गुलामों को भी कोरियाई सरकार के मंत्रियों से लज्जित होते हैं । हम कैसे विदेशीयों के द्वारा किए गए अपमान के गर्त में पहुँच गए ? क्या कोई अधिकारी नहीं है जो कोरियाई जनता के लिए दुःख व्यक्त करे और जिसको मानसिक पीड़ा हो ? बल्कि, वर्तमान स्थिति के बावजूद, कोरिया सरकार के मंत्री आज भी शक्ति पाने की दौड़ में आपसी गुटों में संघर्षरत हैं ।अफ़सोस की बात है कि क्या हम कभी अधीन राज्य के हिस्सेदारी को समाप्त कर पाएँगे ? इस हालत में, दूसरी दुनिया में पुराने सम्राटों का सामना कैसे करेंगे, क्या वे दो कड़ोर कोरियन लोगों का सामना कर पाएँगे?
* हीरोबुमी इतो: कोरिया के प्रथम रेजीडेन्ट जनरल और प्रधानमंत्री ।
** किम सांग-होन(1570-1652): इन्होंने 1636 में मंचू युद्ध के समय हमलावर म्योंके आत्मसमर्पण लिये जाने का विरोध किया जिसके लिए इन्होंने आत्मसमर्पण का लेखा-जोखा फाड़ दिया । छोंग-उम उनका उपनाम था ।
*** जियोंग ऑन (1569-1641): इन्होंने आत्मसमर्पण की विरोध करने के लिए अपनी आँतें निकालकर आत्महत्या की । दोंग-ज्ञे) उनका उपनाम था ।