dokdo

मटेरियल केंद्र

Dokdo, Beautiful Island of Korea

जापानी आक्रमण के बारे में कोरियाई जनता की जागरूकता

home > मटेरियल केंद्र > दोक्दो, कोरियन प्रायद्वीप में जापानी अधिक्रमण का पहला शिकार > जापानी आक्रमण के बारे में कोरियाई जनता की जागरूकता


print facebook twitter Pin it Post to Tumblr

ह्वांगसोंग शिनमुन(समाचारपत्र)

कोरिया-जापान समझौता-वार्ता संधि की भर्त्सना, 『ह्वांगसोंग शिनमुन(समाचारपत्र)』 (मार्च, 1, 1904)

〔अनूदित लेख〕

संपादकीय लेख
कोरिया-जापान समझौता-वार्ता संधि की भर्त्सना
इस समाचारपत्र ने कोरिया-जापान समझौता-वार्ता संधि को पहले प्रकाशित किया था और दूसरे समाचारपत्रों ने इसे दुहराया और प्रसार किया । बहुतो ने इसे पढ़ा और पूरी तरह समझने की कोशिश की, हालाँकि किसी ने इसपर खुलकर बात नहीं की । मुख्यतः, चारों ओर इस संधि के बारे में अफवाहें उड़ायी जा रही है और इस अस्थिर और हलचल भरी स्थिति में लोग तनावग्रस्त और सशंकित है । मैंने, एक प्रकार की हैसियत से, इन बेतुकी अफवाहों की जाँच की और परिणामस्वरूप यहाँ इससे जुड़े गलत तथ्यों की विसंगतियों का वर्णन किया है । पर इससे क्या फायदा? संधि पर तो पहले हस्ताक्षर कर लागू कर दिया गया है । लाखों करोड़ों तर्क व्यर्थ होगा और जुबान को दबा दिया जाएगा । फिर भी, हम पत्रकार होने के नाते ना तो चुप रहेंगे और ना ही लिखना छोड़ेंगे ।
सामान्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय समझौते चंद निजी व्यक्तियों के बीच का अनुबंध नहीं है बल्कि दो राष्ट्रों के बीच निर्धारित अधिकारों और कर्तव्यों के संबंधों को परिभाषित करते हैं । हालाँकि, इन समझौतों में हम कोरियाई जनता की बात नहीं राखी जा सकती, लेकिन ऐसे समझौते अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनी व्यवस्था को केन्द्र में रखकर किया जाना चाहिए । इसमें लोकमत और सहमति की मुख्य भूमिका होनी चाहिए । लंबे विमर्श के बाद ही किसी निर्णय पर पहुँचना चाहिए । ऐसा करने से, हम भूल से बच सकते हैं और कुछ सीख भी सकते हैं । उससे समझौता को उचित तरीके से किया जा सकता है, और भले ही दूसरा पक्ष समझौता करने के लिए दबाव दल रहा हो मगर उसमे जल्दबाजी नहीं की जा सकती । ऐसे हालात में, इतनी बड़ी समझौते पर कोरिया सरकार के मंत्रियों ने कैसे ऊपर्युक्त प्रक्रिया से बचते हुए जल्दबाजी में सहमत हो गए ? सामान्य तौर पर, कुटनीतिक समझौते के जिम्मेदार लोगों को कुछ हद तक सावधान और सतर्क दोनों होना चाहिए । इतनी बड़ी भूल के लिए, वे न केवल कोरियाई जनता की निगाह में दोषी हैं बल्कि मरने के बाद भी दूसरी दुनिया में जाकर यहाँ के सभी गुज़रे सम्राटों के सामने शर्मिंदा होंगे । हाय !
संधि के अनुच्छेद 1 में यह निर्धारित किया गया है कि कोरिया सरकार जापानी सरकार को प्रशासन में संभावित सुधार के लिए हस्तक्षेप की अनुमति प्रदान करती है । यह कितनी बड़ी भूल है! कोरिया सरकार के प्रशासन में सुधार की जिम्मेदारी सिर्फ कोरियाई सरकार की है, और किसी भी दुसरे देश को इसमें हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए । यह लोगों की जरूरत के आधार पर तय होना चाहिए कि वे हस्तक्षेप चाहते हैं या नहीं । अगर जापान खुद को सिर्फ मशविरा देने तक सीमित रखता है तो विश्वास और ह्रदय से इसका स्वागत करना चाहिए । हम कम से कम हस्तक्षेप के लिए जापान का सच्चे दिल शुक्रिया अदा करते हैं । लेकिन उससे अलग किसी भी प्रकार का जापानी हस्तक्षेप अंतर्राष्ट्रीय कानून व्यवस्था का गंभीर और सीधा उल्लंघन होगा ।
हालाँकि, अनुच्छेद 1. में सिर्फ मशविरा की बात की गई है, लेकिन इसका सीधा तात्पर्य हस्तक्षेप से है । यह बहुत शर्म की बात होगी अगर हमारी सरकार अपनी जिम्मेदारी खुद तय करने के बजाय बाहर से सलाह लेती है ।इतना ही नहीं, अगर सलाह लेने की बात यह सोच कर भी मान लें कि इसमें कोई बाध्यता नहीं है और किसी कारवाई के लिए विदेशी सलाह का इंतजार करना पड़े तो क्या इसमें राष्ट्रीय संप्रभुता को विदेशी के हाथ में सौंपने के बराबर नहीं है?
और तो और, संधि के अनुच्छेद 4 में यह कहा गया है कि यदि कोरिया का हित अगर किसी तीसरे देशों के आक्रमण या अंदरूनी समस्याओं से खतरे में है तो परिस्थिति के हिसाब से जापान को शीघ्र ही कदम उठाना पड़ेगा ।यह बात समझने लायक है कि जापान तीसरे देशों के आक्रमण के आक्रमण के मद्देनज़र कदम उठाएगी मगर सिर्फ अंदरूनी समस्याओं के ही मामलों में ऐसा क्यों ? अगर हमारे क्षेत्र के भीतर किसी भी अपराधिक समूहों द्वारा कोई खतरा उत्पन्न होता है तो इन उत्पातों से निपटने के लिए हमारे सिपाही ही काफी हैं ।हमें बाहरी सिपाहियों के कार्यवाही की कोई आवश्यकता नहीं है ।
अनुच्छेद 4 में आगे कहा गया है कि कोरिया जापान द्वारा किए गए शीघ्र कारवाई को सुनिश्चित करने में सहायता प्रदान करेगी और इसके अंतर्गत जापान सैनिक दृष्टिकोण से कोरिया के किसी भी क्षेत्र पर जापान अपना अधिकार कर सकती है ।जापान द्वारा प्रयुक्त किए गए पद “शीघ्र कारवाई”, “सुविधा”, “आवश्यकता”, “मनमानी” शब्दों का इस्तेमाल मनमाने ढंग से करना, कितना हद तक सही है ? इसके बाद, कोरियाई सोच के अनुसार जापान मनमाने ढंग से सैनिक कारवाई कर सकती है और बिना किसी विरोध के किसी भी जमीन पर अपना अधिकार जमा सकती है ।इसका सीधा मतलब है कि कोरिया सिर्फ नाम से स्वतंत्र है, परंतु वास्तव में यह जापानी संरक्षण में है ।इस हालात में, हम कैसे स्वतंत्रता को बचाए रख सकते हैं? इसके अलावा, समझौते का कोई परिभाषित पद नहीं है, इसका मतलब है कि इस समझौते का शर्त अंतहीन है जो जापान और रूस के बीच युद्धविराम के बाद भी चलता रहेगा ।अतःहमारी स्वतंत्रता और संप्रभुता हमेशा के लिए विदेशी हाथ में ही रह जाएगी जैसा कि कहा गया है ।
समझौते के इन लिखित शर्तों के हिसाब से, यह तलवार पर गर्दन रखने से कहीं अलग नहीं है? एक पत्रकार की हैसियत से इस छोटे लेख में अपार दुःख व्यक्त करता हूँ जो बर्दाश्त से भी कहीं अत्यधिक दर्दनीय स्थिति है ।

〔मूल लेख〕

Original Text