सिल्ला राज्य के जनरल इसाबु ने उसान प्रदेश को पराजित कर उसान प्रदेश को सिल्ला राज्य के अधीन कर दिया।
इस तरह उल्लुंग्दो और दोक्दो का इतिहास कोरिया के इतिहास के साथ जुड़ गया।
『दोंगुक मुनहन बीगो (कोरिया से सम्बंधित दस्तावेजों का संकलन, सन 1770)』 में भी उल्लुंग(उल्लुंग्दो) और उसान(दोक्दो) दोनों को उसान प्रदेश का भाग बताया गया है।
सन 1454 में प्रकाशित जोसन (कोरियाई) सरकार के 『सेजों सिल्लोक 』 『जिरीजी』 में यह दर्ज है कि उल्लुंग्दो और दोक्दो, कांगवन प्रांत के उल्जिनह्यन में स्थित दो द्वीप हैं।
साथ ही यह भी दर्ज है कि “ खास तौर पर उसान(दोक्दो) और मुरुंग(उल्लुंग्दो) एक दूसरे से ज्यादा दूर नहीं है और अगर मौसम साफ हो तो आसानी से दोनों देखे जा सकते हैं ।” मौसम साफ होने पर उल्लुंग्दो से नंगी आँखों से दिखने वाला एकमात्र द्वीप दोक्दो है।
यह उल्लुंग्दो में मछली पकड़ने गए आन योंग-बोक और बाक अ-दून नाम के दो लोगों की ओया और मुराखावा परिवार के जापानी नाविकों के द्वारा अपहरण कर जापान ले जाने की घटना है।
इस घटना ने जोसन और जापान के बीच उल्लुंग्दो की संप्रभुता को लेकर एक नए विवाद 'उल्लुंग्दो विवाद' को जन्म दिया।
आन योंग-बोक के अपहरण की घटना के कारण हुए उल्लुंग्दो विवाद के बाद कोरियाई राजा ने सामछक छम्सा के (जोसन काल में ब्रिगेडियर का पद) जांग हान-सां को उल्लुंग्दो भेजकर उल्लुंग्दो की परिस्थिति का जायजा लिया।
उसके बाद प्रधानमंत्री नाम गु मान के सलाह पर हर दो साल में एक बार एक अधिकारी को भेज कर उल्लुंग्दो का मुआयना करने की प्रथा की शुरूआत हुई।
सुठो(मुआयना) : : किसी को खोजने या जानने के लिए जांच
जापानी सामंती सरकार ने उल्लुंग्दो के संप्रभुता में बारे में जानने के लिए दोत्थोरी प्रदेश से उल्लुंग्दो पर उसके अधिपत्य के बारे में प्रश्न(24 दिसंबर) किया।
इसके जवाब में दोत्थोरी प्रदेश ने यह स्पष्ट किया कि दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सूशिमा(दोक्दो) पर उसका कोई अधिकार नहीं है(25 दिसंबर)। इस जवाब के साथ ही जापानी सामंती सरकार ने आधिकारिक रूप में स्वीकार किया कि उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं है।
जापानी सरकार ने दोत्थोरी प्रदेश के जवाब के द्वारा यह जाँच करने के बाद कि उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं है, जापानी नाविकों के उललंगदो(दखेशिमा) जलमार्ग में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया (28 जनवरी 1696)।
तदुपरांत जोसन सरकार को भेजे कूटनीतिक दस्तावेज के द्वारा आधिकारिक तौर पर स्वीकृति दी कि उल्लुंग्दो जोसन के अभिन्न अंग (1699) है ।
यह आन योंग-बोक के द्वारा उल्लुंग्दो के पास मछली पकड़ने आये जापानी नाविकों के जहाज को उल्लुंग्दो और दोक्दो से खदेड़ते हुए जापान तक ले जाने की घटना है।
『 वल्लोक कुब्योंगजान्यन जोसन जुछाक आनईलग्वन जिगाक स 』 (‘जोसन से एक जहाज के आने पर ज्ञापन) नामक एक ऐतिहासिक दस्तावेज में भी यह बात दर्ज है कि आन योंग-बोक ने ओखी द्वीप के जापानी अधिकारियों को यह स्पष्ट रूप से कहा था कि उल्लुंग्दो और दोक्दो जोसन(कोरिया) का भाग है।
यह राजा यंगजो के आदेश पर तैयार किया गया एक सरकारी संकलन है जिसमें जोसन(कोरिया) की संस्कृति और संस्थाओं का इतिहास दर्ज है।
इसमें यह लिखा है कि "उसानदो और उल्लुंग्दो ये दो द्वीप दोनों मिलकर उसान प्रदेश कहलाते है। यजीजी के अनुसार उल्लुंग़ और उसान दोनों उसान प्रदेश का भाग है और उसान का जापानी नाम सोंदो है।"
यह एक निरीक्षण दल, हाकुबो सादा भी जिसके एक सदस्य थे, के द्वारा 1870 में जापान के विदेश मामलों के मंत्रालय को सौंपी गई एक रिपोर्ट है ।
"कोरिया के विदेशी संबंधों के ब्यौरे में एक गोपनीय जांच" के नाम की इस रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि 'ताकेशीमा(उल्लुंग्दो) और मात्सुशीमा(दोक्दो)किन परिस्थितियों में जोसन(कोरिया) का हिस्सा बने। और यह इस बात को साबित करती है कि जापान के विदेशी मामलों के मंत्रालय भी स्पष्ट रूप से दोक्दो को जोसन(कोरियाई) क्षेत्र के रूप में स्वीकारती है।
यह मार्च 1877 में जापान के तत्कालीन सर्वोच्च प्रशासनिक निकाय 'थैजंगग्वान' के द्वारा जापानी गृह मंत्रालय को दिया गया एक आदेश है जिसमें इस बात की पुष्टि की गयी है कि दोक्दो और उल्लुंग्दो द्वीप जापान का हिस्सा नहीं हैं।
जोसन(कोरिया) की सरकार के साथ विचार विमर्श के परिणामस्वरूप (उल्लुंग्दो विवाद के सन्दर्भ में) थैजंगग्वान ने यह निष्कर्ष निकाला की, उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं हैं, और उसने जापान के गृह मंत्रालय को यह इस तरह का आदेश दिया गया कि "इस बात का ध्यान रखा जाए कि दखेशिमा और एक अन्य द्वीप(दोक्दो) का हमारे देश(जापान) से कोई संबंध नहीं है। "
यह सम्राट गोजों द्वारा घोषित एक फरमान है जिसके अंतर्गत उल्लुंग्दो का नाम बदल के उल्दो करने और निरीक्षक के पद को प्रोन्नत कर के मजिस्ट्रेट बनाने वाले कानून की घोषणा की गयी ।
इस फरमान के अनुच्छेद 2 के तहत स्पष्ट रूप से पूरे उल्लुंग्दो, जुकदो और सक्दो(दोक्दो) को उल्दो प्रांत के अधिकार क्षेत्र में रखे जाने की व्यवस्था की गई।
यह दोक्दो के जापानी क्षेत्र में समावेश की घोषणा का एक क्षेत्रीय सुचना है।
जापान मंचूरिया और कोरियाई प्रायद्वीप में अपने हितों के कारण 1904 के बाद से हीं रूस के साथ युद्ध की स्थिति में था। और दोंग्है (पूर्वी समुद्र) में रूस के साथ सम्भाव्य समुद्री संघर्ष की स्थिति में अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे इस द्वीप की जरूरत थी, इसलिए 1905 में जापान ने इस सुचना के जरिए यह दावा करते हुए कि दोक्दो एक अस्वामिक भूमि है, इसे शिमाने प्रांत में शामिल करने का प्रयास किया था।
यह उल्दो प्रान्त के तत्कालीन मजिस्ट्रेट शिम हंग-थैक के द्वारा, शिमाने प्रान्त के अधिकारियों और लोगों द्वारा गठित जापानी जाँचदल के उल्लुंग्दो की यात्रा के दौरान, जापान के द्वारा दोक्दो को जापान का हिस्से के रूप में स्वीकारने की बात सुनकर, अगले हीं दिन गांगवन प्रांत के कार्यवाहक गवर्नर और कोरियाई गृह मंत्रालय(वर्तमान में सुरक्षा और सार्वजनिक प्रशासन मंत्रालय) को दिया एक रिपोर्ट है।
इस रिपोर्ट में ऐसा कहा गया है कि 'दोक्दो जो कि इस काउंटी के अधिकार क्षेत्र में है और यह बात दोक्दो के उल्दो प्रांत के अधिकार क्षेत्र में होने की पुष्टि करता है।
यह कोरियाई साम्राज्य की सर्वोच्च प्रशासनिक संगठन उईजंगबू द्वारा जारी एक निर्देश है जो कि जापान द्वारा दोक्दो को निगमित क्षेत्र बनाने की बात को ख़ारिज करती है।
उईजंगबू को गांगवन प्रान्त के कार्यवाहक गवर्नर से दोक्दो के जापान में समावेश की जानकारी जैसे ही मिली, उईजंगबू के उप-प्रधानमंत्री ने जापान के दोक्दो के समावेश को नकारते हुए यह निर्देशक जारी किया।
यह द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद जापान के प्रशासनिक दायरे से दोक्दो को दूर रखने से सम्बंधित एक ज्ञापन है।
मित्र देशों की शक्तियों के सुप्रीम कमांडर ने इस बात का निर्धारण किया "उल्लुंग्दो, रिआंगखुरुआम(दोक्दो) और जेजूदो जापान के क्षेत्र से बाहर हैं।
यह मित्र देशों की शक्तियों के सुप्रीम कमांडर का ज्ञापन संख्या 677 के बाद का ज्ञापन है जिसमें जापानी जहाजों या नागरिकों को दोक्दो के 12 समुद्री मील के भीतर आने से निषेध किया गया है।
सैन फ्रांसिस्को शांति समझौता द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद मित्र राष्ट्रों और जापान के बीच हुई संधि है।
इस संधि के अनुच्छेद 2 (क) में 'जापान के द्वारा दक्षिण कोरिया की स्वतंत्रता को मान्यता देते हुए जेजूदो, कमुनदो और उल्लुंग्दो सहित सम्पूर्ण कोरिया पर अपने सभी अधिकार, सभी दावे को छोड़ने " की बात है।
और केवल इस तथ्य के कारण कि कोरिया के लगभग 3000 द्वीपों के बीच ऊपरलिखित तीन द्वीपों के अलावा दोक्दो का नाम स्पष्ट रूप से नहीं है, दोक्दो को कोरिया के हिस्से के रूप में नहीं स्वीकारने की बात को तर्कसंगत नहीं माना जा सकता है।