मेइजी काल में, जापानी गृह मंत्रालय ने, उल्लुंग्दो और दोक्दो को भूमि रजिस्ट्री परियोजना में शामिल किया जाये की नहीं, के सम्बन्ध में दोंग्है (पूर्वी समुद्र) में स्थित दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और इल्दो(दोक्दो) के भूमि रजिस्ट्री से सम्बंधित जाँच प्रश्न' बनाकर तत्कालीन जापान की सर्वोच्च प्रशासनिक अंग 'थैजंगग्वान' को भेजा।
इस सम्बन्ध में थैजंगग्वान ने जापानी सरकार और जोसन सरकार के बीच हुए विचार विमर्श के परिणामस्वरूप (उल्लुंग्दो विवाद के सन्दर्भ में) यह निष्कर्ष निकाला की, उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं हैं, और उसने जापान के गृह मंत्रालय को यह इस तरह का आदेश दिया "इस बात का ध्यान रखा जाए ताकेशिमा और एक अन्य द्वीप(दोक्दो) का हमारे देश(जापान) से कोई संबंध नहीं है। इसे ' 『थैजंगग्वान आदेश』 कहा जाता है।
ऊपरोक्त प्रश्नावली के साथ संलग्न 『गिजुक्दो याकदो』(दखेशिमा का सरलीकृत नक्शा) में दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सुशिमा(दोक्दो) चित्रित है और यह भी स्पष्ट है कि 『थैजंगग्वान आदेश』 में उल्लेखित 'दखेशिमा(उल्लुंग्दो) के अलावा इल्दो' का 'इल्दो(एक दूसरा द्वीप)' ही दोक्दो है। .
『थैजंगग्वान आदेश』 के जरिए, 17 वीं सदी में एदो शोगुनेट(सरकार) और जोसन सरकार के बीच हुए उल्लुंग्दो विवाद के दौरान उल्लुंग्दो और दोक्दो की स्थिति स्पष्ट हो जाने की जापान सरकार की समझ को हम अच्छी तरह से जान सकते हैं।
『थैजंगग्वान आदेश』 के आने के कुछ साल पहले 1870 में सादा हाखुबो आदि जापान के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा जोसन(कोरिया) के निरीक्षण के पश्चात जापान के गृह मंत्रालय को सौपें गए रिपोर्ट ' 『 सन गुकजे सिमाल नैथाम स』(जोसन के साथ बातचीत के बाद की रिपोर्ट)' में भी दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सुशिमा(दोक्दो) जोसन के अधिकार क्षेत्र में आने की बात का उल्लेख है। यह इस बात की पुष्टि करता है कि तत्कालीन जापान सरकार इन दो द्वीपों को कोरियाई भूभाग के रूप में स्वीकार करती थी।