> दोक्दो के ऊपर कोरिया की स्थति > दोक्दो पर प्रश्न और जवाब
कोरिया के कई सारे प्राचीन सरकारी दस्तावेजों में दोक्दो के बारें उल्लेख है जो कि इस तथ्य की पुष्टि करता है कि कोरिया प्राचीन काल से हीं दोक्दो को कोरियाई भूभाग की तरह मानते हुए शासन करता आया है।
दोक्दो से सम्बंधित प्राचीन सरकारी दस्तावेजों में से कुछ उल्लेखनीय दस्तावेज निम्नांकित हैं।
दोक्दो के बारे में उल्लेख करने वाले प्राचीनतम जापानी ग्रंथों में से एक 『उन्जु सीछंग हाब्की』(1667), जो कि इजुमो (आधुनिक शिमाने प्रान्त) प्रान्त के अधिकारी साईथो दोयोनोबू के द्वारा लिखी गयी है, में दोक्दो के बारे में इस प्रकार वर्णन किया गया है।
इस प्रकार के वर्णन से यह साबित होता है कि ओखी द्वीप जापान की पश्चिमोत्तर सीमा है और दोक्दो को जापान के क्षेत्र के दायरे में शामिल नहीं किया गया था।
जापानी सरकार के आदेश से एदो काल में मानचित्र निर्माता इनो थादाथागा के द्वारा तैयार किया हुआ 『दैइल्बोन योनहै यजिजनदो(जापान के तटीय क्षेत्र का मानचित्र)』 (1821) तथा कई और जापानी सरकारी मानचित्रों में दोक्दो को नहीं दिखाया गया है। दोक्दो का जापानी सरकार द्वारा प्रमाणित इन मानचित्रों से गायब होना जापानी सरकार द्वारा दोक्दो को गैर जापानी क्षेत्र के रूप में स्वीकारोक्ति को साबित करता है।
The एदो काल के कन्फ़्यूशी विद्वान नागाखुबो सेखिसुई के द्वारा तैयार किया हुआ ' 『जंग इल्बोन यजिरो जंगजनदो(जापानी भूमि और सड़कों के संशोधित नक्शा)』1779, प्रथम संस्करण), जिसे जापानी सरकार द्वारा दोक्दो पर अपनी क्षेत्रीय संप्रभुता साबित करने के प्रयास के रूप में प्रस्तुत किया गया है, कि उल्लुंग्दो और दोक्दो को जापानी क्षेत्र के रूप में नहीं दिखाता है।
इस मानचित्र में चित्रित दोक्दो और उल्लुंग्दो के बगल में 『उन्जु सीछंग हाब्की』में लिखित एक उद्धरण लिखा हुआ है, और 『उन्जु सीछंग हाब्की』पर आधारित यह मानचित्र यह दर्शाती है कि जापान की पश्चिमोत्तर सीमा ओखी द्वीप तक है।
सन 1779 में प्रकाशित मानचित्र के पहले संस्करण में और साथ ही बाद के आधिकारिक संस्करणों में उल्लुंग्दो और दोक्दो को कोरिया की तरह जापानी प्रदेशों से अलग बिना रंग के दिखाना और जापान की अक्षांशीय और देशान्तर लाइन से बाहर दिखाना, आदि ये साबित करते हैं कि उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं हैं।
जापानी मछुआरों के उल्लुंग्दो जलमार्ग को लेकर कोरिया और जापान के बीच एक कूटनीतिक विवाद 1693 में भड़क उठा(उल्लुंग्दो विवाद), 24 दिसंबर 1695 को, जापान की एदो सामंती सरकार ने यह जानने के लिए कि उल्लुंग्दो दोत्थोरी प्रदेश का हिस्सा है या नहीं और क्या कोई और द्वीप दोत्थोरी प्रदेश के अंतर्गत आता है या नहीं, एक सरकारी दस्तावेज़ को दोत्थोरी प्रदेश भेजा।
इसके अगले दिन 25 दिसम्बर को दोत्थोरी प्रदेश ने जापानी सामंती सरकार को या जवाब भेजते हुए कि "न तो दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सूशिमा(दोक्दो) और न हैं उसके अलावा कोई और द्वीप इन दोनों प्रदेशों (इनाबा और होखी) में अंतर्गत आते हैं" साबित कर दिया कि उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान (दोत्थोरी प्रदेश) का हिस्सा नहीं है।
उल्लुंग्दो और दोक्दो के क्षेत्राधिकार संबंधी स्थिति की पुष्टि करने के बाद, जापानी सामंती सरकार ने 28 जनवरी 1696 को तथाकथित 'दखेशिमा(उल्लुंग्दो) जलमार्ग लाइसेंस' को निरस्त कर उल्लुंग्दो जलमार्ग पर प्रतिबन्ध लगा दिया ।
जोसन काल के राजा सुकजों के शासनकाल के दौरान, आन योंग-बोक नामक कोरियाई नागरिक ने दो बार जापान की यात्रा की, जिनमे से एक बार उसे जापानी नाविकों द्वारा अपहरण कर जापान ले जाया गया था। सन 1693 में आन योंग-बोक की अपहरण की इस घटना ने कोरिया और जापान के बीच उल्लुंग्दो की संप्रभुता को लेकर एक नए विवाद 'उल्लुंग्दो विवाद‘ को जन्म दिया। इस विवाद के दौरान कोरिया और जापान के बीच के राजनयिक वार्ताओं से उल्लुंग्दो और दोक्दो के क्षेत्राधिकार की स्थिति स्पष्ट हो जाने के कारण यह एक महत्वपूर्ण घटना है।
1696 में आन योंग-बोक की जापान की दूसरी यात्रा के बारे में, आन योंग-बोक के बयान के रिकार्ड 『सुकजों सिल्लोक』 (राजा सुकजोंग के शासनकाल के इतिहास) में पाया जा सकता है, इसमें यह दर्ज है कि उल्लुंग्दो में आन योंग बोक का सामना जापानी मछुआरों के साथ हुआ तो उसने यह कहा कि 'सोंदो जासानदो है और कोरिया का भाग है।' साथ ही यह भी दर्ज है कि कोरियाई भूभाग उल्लुंग्दो और दोक्दो पर जापान के अधिक्रमण को लेकर जापान जाकर अपना विरोध दर्ज कराया था।
आन योंग-बोक के जापान जाने की घटना कोरियाई दस्तावेजों के अलावा 『जुकदोगिसा』(ताकेशिमा का वर्णन)', 『जुकदोदोहैयूरैगीबालसोगोंग』(ताकेशिमा की यात्रा के रिकॉर्ड के अंश की प्रतिलिपि)', 『इन्बूयन्फो』 (इनाबा प्रांत का कालक्रम)', 『जुकदोगो』 (ताकेशिमा पर टिप्पणी', आदि जापानी दस्तावेजों में भी दर्ज है।
विशेष रूप से हाल में हीं (2005 में) जापान में मिले एक उल्लेखनीय ऐतिहासिक दस्तावेज़ 『वल्लोकगुब्योंगजान्यन जोसनजुछानआनइलग्वनजिकाकस』 (सन 1696 में आन योंगबोक के ओखी द्वीप पर आगमन के वक्त ओखी द्वीप के अधिकारी द्वारा आन योंग-बोक से पूछ ताछ करने के बाद तैयार की गई रिपोर्ट)' भी इस बात की पुष्टि करती है कि आन योंग-बोक ने उल्लुंग्दो और दोक्दो को कोरिया के गंवन प्रान्त का भाग बताया था।
जोसन (कोरियाई) सरकार ने उल्लुंग्दो के नागरिकों को कोरिया की मुख्य भूमि पर बुलाकर रहने के प्रबंध करने के लिए कुछ अधिकारियों को उल्लुंग्दो भेजा। इसे 'प्रत्यार्पण नीति' कहा जाता है।
जोसन (कोरियाई) सरकार ने यह नीति समुद्री डाकुओं के उल्लुंग्दो पर हमले के डर से अपनाया था न कि उल्लुंग्दो पर अपने संप्रभुता को छोड़ने के लिए।
जोसन (कोरियाई) सरकार द्वारा शुरू से हीं अधिकारियों को उल्लुंग्दो भेजना यह साबित करता है कि जोसन सरकार ने काफी पहले से उल्लुंग्दो पर अपने अधिकार को बनाये रखा था। जोसन सरकार प्रारंभ से हीं सुनसिम ग्योंगछाग्वान(विशेष सरकारी अधिकारी) को उल्लुंग्दो भेज रही थी। राजा सुकजोंग के शासनकाल के दौरान, सरकारी गश्ती और निरीक्षण प्रथा(सुथो प्रथा) लागू की गई और 1895 तक इस प्रथा के बंद होने तक सरकारी अधिकारियों को नियमित रूप से उल्लुंग्दो और अन्य ऐसे स्थानों पर भेजा गया।
मेइजी काल में, जापानी गृह मंत्रालय ने, उल्लुंग्दो और दोक्दो को भूमि रजिस्ट्री परियोजना में शामिल किया जाये की नहीं, के सम्बन्ध में दोंग्है (पूर्वी समुद्र) में स्थित दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और इल्दो(दोक्दो) के भूमि रजिस्ट्री से सम्बंधित जाँच प्रश्न' बनाकर तत्कालीन जापान की सर्वोच्च प्रशासनिक अंग 'थैजंगग्वान' को भेजा।
इस सम्बन्ध में थैजंगग्वान ने जापानी सरकार और जोसन सरकार के बीच हुए विचार विमर्श के परिणामस्वरूप (उल्लुंग्दो विवाद के सन्दर्भ में) यह निष्कर्ष निकाला की, उल्लुंग्दो और दोक्दो जापान का हिस्सा नहीं हैं, और उसने जापान के गृह मंत्रालय को यह इस तरह का आदेश दिया "इस बात का ध्यान रखा जाए ताकेशिमा और एक अन्य द्वीप(दोक्दो) का हमारे देश(जापान) से कोई संबंध नहीं है। इसे ' 『थैजंगग्वान आदेश』 कहा जाता है।
ऊपरोक्त प्रश्नावली के साथ संलग्न 『गिजुक्दो याकदो』(दखेशिमा का सरलीकृत नक्शा) में दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सुशिमा(दोक्दो) चित्रित है और यह भी स्पष्ट है कि 『थैजंगग्वान आदेश』 में उल्लेखित 'दखेशिमा(उल्लुंग्दो) के अलावा इल्दो' का 'इल्दो(एक दूसराद्वीप)' ही दोक्दो है।
『थैजंगग्वान आदेश』 के जरिए, 17 वीं सदी में एदो शोगुनेट(सरकार) और जोसन सरकार के बीच हुए उल्लुंग्दो विवाद के दौरान उल्लुंग्दो और दोक्दो की स्थिति स्पष्ट हो जाने की जापान सरकार की समझ को हम अच्छी तरह से जान सकते हैं।
『थैजंगग्वान आदेश』 के आने के कुछ साल पहले 1870 में सादा हाखुबो आदि जापान के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा जोसन(कोरिया) के निरीक्षण के पश्चात जापान के गृह मंत्रालय को सौपें गए रिपोर्ट ' 『 सन गुकजे सिमाल नैथाम स』(जोसन के साथ बातचीत के बाद की रिपोर्ट)' में भी दखेशिमा(उल्लुंग्दो) और मस्सुशिमा(दोक्दो) जोसन के अधिकार क्षेत्र में आने की बात का उल्लेख है। यह इस बात की पुष्टि करता है कि तत्कालीन जापान सरकार इन दो द्वीपों को कोरियाई भूभाग के रूप में स्वीकार करती थी।
19 वीं शताब्दी के आखिर में जापानी लोगों के द्वारा उल्लुंग्दो में अनधिकृत तरीकों से पेड़ काटने जैसी कुछ समास्याएँ होने के कारण जहाँ एक और कोरियाई सरकार ने जापान सरकार से गुजारिश की कि वो इन लोगों को वहाँ से दूर करें, वहीँ दूसरी ओर उल्लुंग्दो के स्थानीय प्रशासन से सम्बंधित कानून को सख्त करने का फ़ैसला किया।
24 अक्टूबर 1900 को तत्कालीन कोरियाई सर्वोच्च प्रशासनिक संगठन उईजंगबु ने यह निश्चय किया की उल्लुंग्दो का नाम परिवर्तित कर उल्दो कर दिया जाये और इंस्पेक्टर(दोगाम) के पद को जिला न्यायाधीश(गुनसु) में पदोन्नत किया जाये। इस निर्णय को 25 अक्टूबर 1900 में सम्राट गोजोंग द्वारा अनुमोदित किया गया और 27 अक्टूबर 1900 को सरकार ने इसे सरकारी राजपत्र में 『शाही धारा संख्या 41』 के रूप में प्रकाशित किया ।
『शाही धारा संख्या 41』 के अनुच्छेद संख्या 2, यह स्पष्ट करता है कि उल्लुंग्दो के साथ-साथ जुकदो और सक्दो भी उलदो प्रांत के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत रखा जाएगा। और यह बात इस तथ्य की पुष्टि करता है कि दोक्दो उल्दो प्रान्त के अधिकार क्षेत्र में आता था।
इस प्रकार, इस ऐतिहासिक तथ्य को कि कोरियाई सरकार ने उल्लुंग्दो के एक भाग के रूप में दोक्दो पर अपने प्रभुत्व को बनाये रखा था, 『शाही धारा संख्या 41』में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है ।
1904 के बाद से हीं मंचूरिया और कोरियाई प्रायद्वीप में अपने हितों के चलते जापान और रूस के बीच में युद्ध की स्थिति बनी हुई थी। 1905 में जापान के द्वारा, शिमाने प्रान्त के सार्वजनिक नोटिस संख्या 40 के माध्यम से, दोक्दो को अपने क्षेत्र में शामिल करने का प्रयास दोंग्है (पूर्वी समुद्र) में रूस के साथ संभव समुद्री संघर्ष की स्थिति में अपनी सैन्य जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से किया गया था।
इससे संबंधित तत्कालीन जापानी ऐतिहासिक दस्तावेज़ में भी यह बात दर्ज है कि विदेशी मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी की इस राय पर कि, "दोक्दो में एक गुम्मट के निर्माण और रेडियो प्रसारण या पनडुब्बी टेलीग्राफ संचार प्रणाली की स्थापना करने से दुश्मन के जहाजों की निगरानी के मामले में हमें एक फायदा होगा।", के आधार पर डोक्डो के जापानी क्षेत्र में समावेश की प्रक्रिया को अपनाया गया था। साथ ही दोक्दो को जापान में विलय की सिफारिश करने वाले नाखाई योजाबुरो ने भी दोक्दो को शुरू में कोरियाई भूभाग के रूप में स्वीकार किया था और जापानी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने भी कहा था कि , " घास का एक तिनका भी नहीं उगने वाले बंजर चट्टान(दोक्दो) जो की कोरियाई क्षेत्र है को हड़प कर, जापान के द्वारा कोरिया को निगल लेने लेने की महत्वाकांक्षा का संदेह देने में जो हानि है वो लाभ से ज्यादा महत्वपूर्ण है।", ये कहना जापानी सरकार द्वारा दोक्दो को कोरियाई क्षेत्र के रूप में स्वीकारने की बात को साबित करता है।
फरवरी 1904 में जापान ने रूस-जापान युद्ध में कोरियाई क्षेत्र का असीमित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कोरिया से 'कोरिया-जापान प्रोटोकॉल' पर हस्ताक्षर करवाने की कोशिश की थी और अगस्त 1904 में जापान ने 'प्रथम कोरिया-जापान समझौता' के माध्यम से कोरियाई सरकार के सलाहकार के रूप में जापानी और गैर-कोरियाई नागरिकों को नियुक्त करने के लिए कोरियाई सरकार को विवश करने आदि कदमों के द्वारा जापान कोरिया को चरणबद्ध तरीके से अपने अधिकार में लेने की योजना को अंजाम दे रहा था और दोक्दो जापान के इस योजना का पहला शिकार था।
इस प्रकार शिमाने प्रान्त की सार्वजनिक नोटिस संख्या 40 कोरिया की क्षेत्रीय अखंडता को कमजोर करने के लिए जापान की व्यवस्थित योजना का हिस्सा था। अपने क्षेत्र में दोक्दो को शामिल करने का जापान का प्रयास दोक्दो पर कोरिया की निर्विवाद संप्रभुता, जिसे कि एक लंबी अवधि में स्थापित किया गया था, को अतिक्रमण करने वाला अवैध कृत्य है। इसलिए शिमाने प्रान्त की सार्वजनिक नोटिस संख्या 40 अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार अमान्य है।
28 मार्च 1906 को उल्दो प्रान्त के तत्कालीन मजिस्ट्रेट शिम हंग-थैक ने, शिमाने प्रान्त के अधिकारियों और लोगों द्वारा गठित जापानी जाँचदल के उल्लुंग्दो की यात्रा के दौरान, जापान के द्वारा दोक्दो को जापान का हिस्से के रूप में स्वीकारने की बात सुनने के बाद, अगले हीं दिन गांगवन प्रांत के कार्यवाहक गवर्नर और कोरियाई गृह मंत्रालय(वर्तमान में सुरक्षा और सार्वजनिक प्रशासन मंत्रालय) को इस बात की सुचना दी।
मजिस्ट्रेट शिम हंग-थैक से इस बात की जानकारी मिलने के बाद, गांगवन प्रांत के कार्यवाहक गवर्नर और छुनछन प्रान्त के मजिस्ट्रेट ली म्यंग-रै ने 29 अप्रैल 1906 को उईजंगबू(कोरियाई साम्राज्य की सर्वोच्च प्रशासनिक संगठन) को इसकी सुचना दी।
इस संबंध में, इसी साल 20 मई को कोरियाई साम्राज्य की सर्वोच्च प्रशासनिक संगठन उईजंगबू ने निम्नलिखित निर्देश जारी किया । (『निर्देश संख्या-3』)
इसके जरिए ये पता चलता है कि 1900 में जारी किए गए 『शाही धारा संख्या 41』 के अनुसार उलदो प्रांत के न्यायाधीश ने 1906 तक दोक्दो पर शासन करना जारी रखा।
द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद जापान के क्षेत्रीय सीमा पर संयुक्त शक्ति की स्थति को दर्शाया है, काइरो के उदघोषण में (1 दिसम्बर 1943), ऐसा कहा जाता है कि जापान उन दूसरे क्षेत्रों से भी बाहर कर दिया जाएगा जिसे जापान ने सख्ती और लालच से अपना रखा है।
काइरो घोषणा का अंश भी कोरिया की आजादी की पुष्टि करता है जो कुछ इस तरह है: “तीन महान शक्तियाँ, कोरिया की दासता के प्रति जागरूक कोरियाई लोग कृतसंकल्प है कि कुछ समय में कोरिया आज़ाद और स्वतंत्र हो जाएगा।
-1945 के पोछ्डाम घोषणा जिसे जापान ने आत्मसमर्पण के शर्त के रूप में स्वीकार किया था। यह पुनः पुष्टि करता कि काइरो घोषणा की शर्तें आगे भी लागू किये जायेंगे।
-द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक शक्तियों के सुप्रीम कमांडर जनरल मुख्यालय ने उन क्षेत्रों से दोक्दो को अलग कर दिया था जो जापान के द्वारा नियंत्रित और शासित किये जाते थे l जैसा कि 29 जनवरी 1946 को संयुक शक्ति सूचि संख्या के सर्वोच्य नायक (SCAPIN-Supreme Commander of Allied Powers Index Number 677) के निर्देशों में निर्दिष्ट किया गया है।
-कहे गए शर्तों के अनुच्छेद 3 में ,” जापान के चार द्वीप (होन्शु, क्यूशू, होकाईदो, शिकीकू) और लगभग 1000 छोटे छोटे निकटवर्ती द्वीप” जापान के क्षेत्र को शामिल करता है एवं उल्लुंग्दो, दोक्दो और जेजूदो को उस से अलग करता है।
हालाकि, SCAPIN 1033 दोक्दो के 12 नॉटिकल मील के क्षेत्र में जापान के जहाज़ों और ब्यक्तियों को आने का निषेध करता है।
1951 में जापान के साथ हुए सैनफ्रांसिस्को शांति समझौता में आर्टिकल 2 यह जानकारी देता है कि जापान कोरिया के स्वतंत्रता को मान्यता देता है और कोरिया के ऊपर सारा अधिकार, टाइटल और दावे का परित्याग करता है l साथ हीं साथ क्वेल्पार्ट(जेजुदो), पोर्ट हैमिलटन(ग्योमुन्दो) और डग्लेते (उल्लेंग्दो)का भी परित्याग करता है।
कोरिया के 3000 द्वीपों में से उधृत आलेख, उदाहरण के तौर पर केवल जेजुदो, ग्योमुन्दो और उल्लेंग्दो को शामिल करता है l अतः यह एक सत्य है कि उधृत आलेख में दोक्दो का नाम साफ़ तौर से नहीं शामिल किये जाने का मतलब यह नहीं है की दोक्दो कोरिया के उन क्षेत्रों में शामिल नहीं है जो जापान से अलग हुआ है।
1943 के काइरो के घोषणा और 1946 के SCAPIN 677 में प्रतिबिंबित संयुक्त शक्तियों के पक्ष को देखते हुए यह समझना चाहिए कि दोक्दो कोरिया के उन क्षेत्रों में शामिल है जो जापान से अलग हुआ है।
1954 में जब जापान की सरकार ने यह मांग की थी कि दोक्दो के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्यालय (ICJ: International Court of Justice) में ले जाना चाहिए तब कोरिया गणराज्य की सरकार ने निम्नलिखित पक्ष पेश किये थे।
कोरिया गणराज्य की सरकार इसी स्थिति को आगे भी कायम रखेगा।
दोक्दो के ऊपर कोरिया गणराज्य का वैधानिक, प्रशासकीय एवं न्यायिक अधिकार है।
कोरिया गणराज्य की सरकार दोक्दो के क्षेत्रीय एकता की रक्षा करना जारी रखेगा।